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02नई दिल्ली l दितम्बर 2020
अंत ्ें ्ैं यहीं कहना चाहूँगा की िगलाल बाबू िैसे ् हापुरुष ् रते नहीं बसलक अपने वकए गए काययों से लोगो के विलों ्ें
ह्ेशा विनिा रहते है. ऐसे प्रे रराश्ोत वशक्क, िेशभति, स्ािसुधारक, रािनेता को उनके त्ा् संघषयों और उपलस्धयों के वलए
स्सत िांगी पररिार हृ िय से धनयिाि और उनके चररों ्ें कोव्-कोव् न्न करता है.
(प्रथा्यः समरणली्य श् ली जग्था् महतो के 58वीं दनवथा्षण दिवि के अविर पर िथािर िमदप्षत)
ह् सभी िानते हैं की स्ाि व् िेश के वन्ामिर ्ें वशक्कों की भूव्का सिवोपरर होता है, और एक वशक्क िब
अपने अधयापन के सा्थ अपने अंिर स्ािसेिा, िेशभवति और रािनीत को भी स्ावहत कर लें तो िे एक ऐसे
वयवतिति बन िाते है, विनका अनुशरर कर स्ाि व् िेश युगों-युगों तक प्र भावित व् लाभासनित होता रहता है.
यहाँ ्ैं बात कर रहा हूँ, वबहार के गांधी कहे िानेिाले िाँगी रत्न, एक अद्भूत ् सीहा, रािनेता सि. श् ी िगलाल ्
हतो की. विनका िन् 4 िुलाई 1905 को गया विला के ्ै गरा गांि ्ें एक बहुत ही साधारर वकसान पररिार ्ें
हुआ ्थ ा. वपता सि. श् ी रा्धन ् हतो त्था ् ाता सि. श् ी्ती विलासी िेिी की िो संतानों ्ें ये छो्े ्थे , िोनों
की प्र ारसमभक वशक्ा ग्र ा्ीर पररिेश ्ें ही प्र ारमभ हुयी, बड़े भाई ने अपनी पढ़ाई पूरी कर पाररिाररक सस्थवत को
िेखते हुए ्ै गरा ् धय विद्ालय ्ें ही प्र धानाधयापक के रू प ्ें अपनी सेिा प्र ारंभ कर िी, परनतु, िगलाल बाबू
बचपन से ही ि्ींिारों, अंग्रेिों के शोषर व् उतपीड़न से आहत ्थे , अतः िे सकरूली वशक्ा के िौरान वनःसिा्थमि व्
सेिा भाि से शुरू की गयी अपने अधयापन कायमि को छोड़ ् ात् 13-14 साल की उम्र ्ें 1919 ्ें िेश की
सितंत्ता के वलए आतुर सेनावनयों को कुचलने के वलए अंग्रेिों द् ारा लगाए िा रहे “रॉलेक् एक्” के विरोध ्ें
आंिोलन ्ें करूि पड़े.
यही से उनके िीिन ्ें िेशभवति की नीि पड़ गयी और वरर उनहोंने पीछे ्ु ड़कर नहीं िेखा, िब 1920 ्ें ्
हात्ा गाँधी ने “असहयोग आंिोलन” की शुरुआत की तो िगलाल बाबू उस्े पूरमि रू प से सवक्य हो गए,
अब िे एक छात् के सा्थ आंिोलनकारी भी ्थे और िीिन ्ें वशक्ा की आिश्यकता एिं अहव्यत को भली
भांवत स्झते ्थे , इसवलए आंिोलन और अधयन के बीच के सा्ंिसय के तार को कभी ्ू् ने नहीं विया और
1923 ्ें िे “व्वडल भनामिकुलर गुरु ट्े वनंग (ए्. भी. िी. ् ी.) निािा” से प्र वशक्र प्र
ापत करने चले गए त्था लौ्ने के बाि िे चार िषयों तक अपर प्र ाइ्री सकरूल, इ्ा्गंि ्ें
अधयापन कायमि वकया. वशक्ा के प्र वत उनकी भूख और पढ़ने की ललक ने ् हतो िी को
िहाँ भी व्कने नहीं विया और िे पुनः इसे छोड़ 1928 ्ें रंगलाल हाई सकरूल, शेरघा्ी ्ें
अधयन के वलए चले गए.
इसी िौरान ्ें 1930-32 ्ें गाँधी िी द् ारा चलाए गए वििेशी स्ानों का बवहष्कार,
खािी का प्र चार-प्रसार, खरीि-वबक्ी के वसलवसले ्ें िेल भी िाना पड़ा. ् हतो िी की
नेतमृति क् त्ा, कायमि कुशलता, स्ाविक सद्ाि से प्र भावित होकर ततकालीन नेतमृति
ने उनहें “प्रांतीय हररिन सेिक संघ” का अधयक् बना विया, इस प्र कार अब ् हतो िी